5G radiation के कारण कोरोना की दूसरी लहर खतरनाक viral post की सच्चाई(5g viral post)

भारत मे कोरोना की बढ़ती रफ्तार से लोगों की अकाल मृत्यु होने के लिए 5G टेस्टिंग जिम्मेदार ?

चीजो को छूने से लग रहा कर्रेंट 

पक्षियों के मरने के पीछे भी 4G रेडिएशन को बताया था जिम्मेदार

भारत मे आये दिन कोरोना महामारी के लगभग 4 लाख मामले सामने आ रहे है वहीं इस बीमारी से मरने वालों की संख्या में भी आये दिन इजाफा हो रहा है जिसके लिए अब एक वायरल पोस्ट में ये दावा किया जा रहा है कि लोगो मे ऑक्सीजन की कमी कोरोना की वजह से नही बल्कि 5G टेस्टिंग की वजह से हो रही है इसकी रेडिएशन हवा को जहरीली बना रही है जिससे लोगों को सांस लेने में दिक्कत हो रही है और अकाल मृत्यु हो रही है।


वाइरल पोस्ट के मुताबिक किसी वस्तु के छूने से लगने वाले कर्रेंट के पीछे इलेक्ट्रोन की संख्या का प्रोटोन की संख्या के मुकाबले बढ़ जाना बताया गया है इसमें लिखा है की शरीर में इलेक्ट्रोन व् प्रोटोन का स्तर प्रभावित हो रहा है इसके अलावा रेडियोफ्रीक्वेंसी के जरिये लोगो तक इस बिमारी के पहुचने की बात भी कही गयी है।

IIT दिल्ली के इन्जिनीरिंग डिपार्टमेंट असिस्सेंट प्रोफ़ेसर अभिषेक दीक्षित के अनुसार कोई भी रेडिएशन इलेक्ट्रोमाग्नेटिक वेव के कारण पैदा होती है उसका कोई पोटेंशियल नहीं होता है इसलिए किसी भी वेव से करेंट लगने की आशंका नहीं होती। 5G रेडिएशन के कारण करेंट लगनेे  की बात सिर्फ के एक अफवाह हो सकती है। रेडिएशन का कोई शोर्ट टर्म नुक्सान शरीर को नहीं होता है। करेंट हमारे शरीर को तभी लग सकता है जब हम किसी हायर पोटेंशियल वाली वस्तु को छूते है रोजमर्रा जीवन में लगने वाले करेंट से कोई नुक्सान नहीं है जैसे हम कंघी या कुर्सी को छूते है तो हमें कभी कभी हल्का करेंट महसूस होता है इसका हमे कोई नुकसान नही होता है लेकिन अगर आप इलेक्ट्रिक वायर को छुएंगे तो ये आपके लिए खतरनाक हो सकता है। 


WHO के अनुसार 5G radiation से नही हो रहा है corona महामारी का प्रसार 

रेडियोफ्रीक्वेंसी के जरिये कोरोना का संचार सम्भव नही  

रेडियोफ्रीक्वेंसी के बारे में बात करते हुए WHO ने लिखा है ,"रेडियोफ्रीक्वेंसी फिल्ड और मानव शारीर के बीच होने वाली प्रक्रिया से टिशु गर्म होते है हाल की रेडियोफ्रीक्वेंसी की तकनीक के लेवल से संपर्क होने पर मानव शरीर का तापमान थोड़ा बढ़ता है जैसे ही फ्रीक्वेंसी बढती है शरीर के टिश्यू में उसका प्रवेश कम होता है और शरीर के बाहरी हिस्से (चमड़ी और आँखे) में उर्जा का प्रवेश बढ़ने लगता है। यदि कुल एक्सपोजर अन्तराष्ट्रीय मानको से कम रहता है तो आम जनता के स्वाश्थ्य पर इसके हानिकारक प्रभाव पड़ने की अपेक्षा कम की जाती है."
WHO राईटर्स के अनुसार," वैज्ञानिक सबूत ये बताते है की 5G उत्सर्जन लगातार नही बढ़ता है इसका मतलब है ज्यादा एक्सपोजर किसी भी तरह का हानिकारक प्रभाव पैदा नहीं करता है। उहोने इस बात पर ज्यादा जोर दिया है की अगर एक्सपोजर लिमिट्स का ध्यान रखा जाये तो 5G से स्वास्थ्य सम्बंधी नुक्सान नही हो सकता


4G रेडिएशन की वजह से नहीं मरे थे पक्षी

जनवरी 2021 में ऑल्ट न्यूज ने 5G ट्रायल्स के कारण पक्षियों के मरने के दावे को गलत पाया था। बी बी बी सी की एक रिपोर्ट के मुताबिक,"5G और मोबाइल फोन्स तकनीक इलेक्ट्रोमाग्नेटिक स्पेक्ट्रम की लो-फ्रीक्वेंसी के तहत आती है ये मेडिकल X-RAYS और सूर्य की किरणों की नुकसानदायक , हाई फ्रीक्वेंसी के विपरीत विजिबल लाईट से भी कम पावरफुल है और कोशिकाओं को कोई नुक्सान नहीं पंहुचा सकते है।


विज्ञान के नजरिये से 

ब्रह्माण्ड में सभी चीजे परमाणु से बनी होती है हर परमाणु में इलेक्ट्रॉन,प्रोटोन व् न्यूट्रॉन होते है। इलेक्ट्रॉन में नाकारात्मक आवेश होता है, प्रोटोन सकारात्मक रूप से आवेशित होते है जबकि न्युट्रोन में कोई आवेश नही होता है। एक परमाणु में इलेक्ट्रोन व् प्रोटोन की मात्रा बराबर होने पर वो स्थिर होता है जिससे इनकी संख्या कम या ज्यादा होती है परमाणु की स्थिरता गड़बड़ा जाती है। सामान्य तौर पर किसी भी घर्षण के कारण हमारे शरीर में इलेक्ट्रोन की संख्या बढ़ जाती है और दूसरी वस्तु में कम हो जाती है इसके बाद जब हम किसी वस्तु को छूते है तो हमारे शरीर से अतिरिक्त इलेक्ट्रोन बहार निकलते है तब हमे करेंट महसूस होता है। विज्ञानं में इस कर्रेंट को स्टेटिक कर्रेंट कहा जाता है।   


Post a Comment

और नया पुराने