कोई भी बन सकता है पत्रकार, सिटीजन जर्नलिस्ट मीडिया पर प्रहार



आज कल पत्रकारिता में सिटीजन जर्नलिस्ट के दाखिले से पत्रकरिता में भाषा गिरावट आने के साथ ही विश्वनीयता भी संकट में पड़ गई है।

विचारो को किसी भी ढंग से प्रस्तुत कर उन्हें सोशल मड़िया प्लेटफार्म पर प्रकाशित कर अपने आप को सिटीजन जर्नलिस्ट कहलाने वालो की इतनी तादाद हो गई है की पत्रकारिता करना मुश्किल हो गया है। एम सी यू के नए कुलपति डॉ सुरेश के अनुसार जब एक सिटीजन डॉक्टर व सिटीजन इंजीनियर नहीं हो सकता है तो फिर सिटीजन जर्नलिस्ट क्यों ? 

इस नए युग मे नई तकनीक से मीड़िया को एक अलग मंच मिला है लेकिन सोशल मीड़िया की वजह से विचार और समाचार का बहुत घातक मिश्रण देखने को मिल रहा है। जिसका परिणाम पूरा पत्रकारिता जगत भुगत रहा है। 

पत्रकारिता क्या है? 
यह सवाल बहुत से पत्रकारों को ऐसे चुभता है जैसे उनसे उनके पत्रकार होने प्रमाण मांग लिया है वास्तविकता यही की जिस तरह से अन्य क्षेत्रों में दक्ष व डिग्रीधारकों को काम करने की आजादी होती है ऐसी ही व्यवस्था मीड़िया जगत में होनी चाहिए।
कोई भी बन सकता है पत्रकार?
इन स्थितियों में पत्रकारिता विश्वविद्यालयों की क्या जरूरत है, इन्हें बंद कर देना चाहिए। देशभर में पत्रकारिता विभाग किसलिए हैं, उन्हें भी बंद कर देना चाहिए। क्या जरूरत है, जब कोई भी बन सकता है पत्रकार।

वास्तव में पत्रकार के लिए ट्रेनिंग की जरूरत है। आज हाल यह है कि जिसे भी थोड़ा लिखना आता है, वह पत्रकार बन जाता है ऐसे लोग सिटीजन जर्नलिस्ट नहीं, बल्कि सिटीजन कम्युनिकेटर बन सकते हैं। पत्रकारिता प्रोफेशन है, इसलिए परिभाषित किया जाना चाहिए कि पत्रकारिता क्या है और पत्रकार कौन है, इसलिए जरूरी है कि पत्रकार के लिए डिग्री या डिप्लोमा अनिवार्य किया जाए।"

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