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उत्तर प्रदेश सरकार ने विद्यालयों को विद्यार्थियों की 50 प्रतिशत उपस्थिति के साथ खोलने का आदेश तो दे दिया है लेकिन क्या इससे विद्यार्थियों को कुछ फायदा होने वाला है।ऐसा इसलिए क्योंकि जिस तरह से जिस तरह से जूनियर और प्राइमरी को अलग-अलग भागो मे बांटकर सप्ताह में तीन-तीन दिन बुलाने की प्रक्रिया विद्यालयों ने शुरू की है उससे लगता नही है की विद्यार्थियों के लिए यह लाभदायक होने वाला है।
११ महीने बाद up government ने विद्यालयों को खोलने की अनुमति प्रदान कर दी है वो भी इस तरह की शर्तो के अनुसार जिनका अनुपालन करना शायद विद्यार्थियों और विद्यालयों के बहुत मुश्किल होने वाला है। क्योंकि जिस तरह विद्यार्थियों को अलग अलग दिन पढ़ाने की नई तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है वो कारगर साबित होती नजर नही आ रही है।
अभिभावकों अनुसार बच्चों की पढ़ाई का पहले ही बहुत नुकसान हो चुका है और विद्यालयों को इस तरह से खोलना शायद ही बच्चो को कुछ समझ आ पाए क्योंकि इस नए तरीके से बच्चे जो पहले तीन दिन में पढेंगे वह शायद ही अगले सप्ताह (तीन दिन के अवकाश के बाद) याद रह पाए।इसी के साथ विद्यालयों ने भी इसको और चुनौतीपूर्ण बना दिया है। विद्यालयों ने स्कुल वैन को प्रतिबंधित करते हुए अभिभावकों से बच्चों को लाने और ले जाने का नोटिस जारी किया है। ऐसा इसलिए क्योंकि जिस गाड़ी में पहले 40 से 50 बच्चें बिठाये जाते थे सरकार आदेशानुसार अब उसमें 50 फीसदी ही बच्चों को बिठाया जा सकता है। मिली जानकारी अनुसार कुछ लोगों का कहना है की यदि कोई काम करने के लिए बाहर जाता है तो उसे अपने बच्चे को लेने काम छोड़कर वापिस आना होगा जो कि बहुत ही कठिन होगा। यदि कोई रोज अपने काम को छोड़कर आएगा तो ऐसा न हो कि एक दिन उसे अपनी नौकरी से हाथ धोना पड़े। ऐसी स्थिति में या तो अभिभावक अपना काम छोड़ दे यदि ऐसा करे तो विद्यालय की फीस कैसे जमा होगी ? या फिर बच्चे का विद्यालय जाना बंद करवा दे पर दोनों ही परिस्थितियों मे नुकसान तो अभिभावकों का ही है। इसलिए सरकार से अनुरोध है की या तो विद्यालयों को पूर्ण रूप से खोल दिया जाए या जब तक पूर्णरुप से खुलने की स्थिति न हो तब तक बंद रख ऑनलाइन शिक्षण जारी रखा जाए।
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